आदमी कह रहा है कान में क्या

  - Prashant Kumar

आदमी कह रहा है कान में क्या
ज़िंदगी खो गई दुकान में क्या

क्यूँ किसी पे असर नहीं होता
कुछ कमी है मिरी ज़बान में क्या

जान कब की गँवा चुका मैं तो
और भी कुछ है इम्तिहान में क्या

कब से ज़ंजीर खट-खटा रहा हूँ
अरे कोई नहीं मकान में क्या

जान दिल जिस्म सब ख़रीद लिए
और कुछ है तिरी दुकान में क्या

सभी बेरोज़गार फिरते हैं
रोज़गार अब नहीं जहान में क्या

  - Prashant Kumar

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