मान ले बात मिरी दिल में बसा ले मुझको - Prashant Kumar

मान ले बात मिरी दिल में बसा ले मुझको
अपनी दुनिया में हमेशा को बुला ले मुझको

अरे ऐसे में कहाँ जाऊँ बड़ी गर्मी है
तू ही बिजने से हवा करके सुला ले मुझको

वही लम्हा कहीं फिर याद न आ जाए मुझे
कोई ऐसा करे बातों में लगा ले मुझको

ज़िंदगी थक सा गया हूँ तुझे जीते जीते
छोड़ कल की अभी दुनिया से उठा ले मुझको

ज़हर तो हूँ मैं प सुरमे की तरह हूँ कुछ कुछ
यूँ न हो तू कहीं आँखों में लगा ले मुझको

क्या करूँ बोल दिखाई नहीं देता है तो
मैंने थोड़ी कहा पलकों पे बिठा ले मुझको

यूँ न देखा करो तुम डर लगा रहता कोई
नाम लेकर के तुम्हारा न बुला ले मुझको

ख़ूब अच्छे से मोहब्बत तुझे समझा दूँगा
अगर इक बार अकेले में बुला ले मुझको

अरे दुनिया में तो मैं घूमता ही रहता हूँ
जान-ए-मन एक दफ़ा दिल में घुमा ले मुझको

वैसे तो तूने कहीं का ही नहीं छोड़ा है
आज रोने के बहाने से बुला ले मुझको

- Prashant Kumar
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