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काली रात के सहराओं में नूर-सिपारा लिक्खा था  - Ahmad Salman

काली रात के सहराओं में नूर-सिपारा लिक्खा था
जिस ने शहर की दीवारों पर पहला ना'रा लिक्खा था

लाश के नन्हे हाथ में बस्ता और इक खट्टी गोली थी
ख़ून में डूबी इक तख़्ती पर ग़ैन-ग़ुबारा लिक्खा था

आख़िर हम ही मुजरिम ठहरे जाने किन किन जुर्मों के
फ़र्द-ए-अमल थी जाने किस की नाम हमारा लिक्खा था

सब ने माना मरने वाला दहशत-गर्द और क़ातिल था
माँ ने फिर भी क़ब्र पे उस की राज-दुलारा लिक्खा था

- Ahmad Salman

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