दिल हर किसी की बातों में आता चला गया
मैं तन्हा बैठ आँसू बहाता चला गया
जो दिल में था मेरे वो किसी ने नहीं सुना
जो भी मिला वो अपनी सुनाता चला गया
पूरी हो जाए तेरी कमी सिर्फ़ इस लिए
मैं तितलियों को दोस्त बनाता चला गया
इक तरफ़ा प्यार तो मैं निभा ही रहा था फिर
इक तरफ़ा दोस्ती भी निभाता चला गया
ख़ुद के ग़मों पे आँसू बहाना फ़िज़ूल था
मैं हँस के अपने ग़म को भुलाता चला गया
हम उसके दिल के बोझ को हल्का न कर सके
वो भी हमारा बोझ बढ़ाता चला गया
वो एक सच को यार छिपाने के वास्ते
वो और भी ज़्यादा झूठ बनाता चला गया
जब भी उसे भुलाने की कोशिश जो मैंने की
और भी ज़ियादा याद वो आता चला गया
घर में न था रिवाज़ 'अमित' झूठ कहने का
जो सच था वो ज़बान पे आता चला गया
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