मिरे दिल के फूल को तोड़ कर तू तो बेहिसी से मसल गया
मिरी ख़ुशबू है तिरे हाथ में मिरा दिल इसी से बहल गया
कभी रहता मौसम-ए-गुल-फ़िशाँ कभी वो ख़िज़ाँ में बदल गया
था फ़ुसूँ ये गोया निगाह का कभी टल गया कभी चल गया
हुई कब फ़ना मिरी आरज़ू हुई ख़त्म कब तिरी जुस्तुजू
नई मंज़िलों की तलाश में लिए कारवाँ मैं निकल गया
मिरी कम रवी न बता इसे मिरे अज़्म को भी तो दाद दे
मिरी जुंबिशों पे न जा फ़क़त जो गिरा कभी तो सँभल गया
मिरी कोशिशों में न थी कसर मिरी बात का भी यक़ीन कर
मैं जो चाँद लाया था तोड़ कर मिरे हाथों से वो फिसल गया
ये उदासियाँ ये फ़सुर्दगी ये नुक़ूश-ए-हैरत-ओ-बेबसी
लगे बदला बदला सा आइना या कि रुख़ ही मेरा बदल गया
न वो क़हक़हे न वो महफ़िलें न वो मयकदे की है रौनक़ें
हुआ क्या कि देखते-देखते ये निज़ाम सारा बदल गया
है मिज़ाज क्या नए दौर का रहे दिल में हर घड़ी ख़ौफ़ सा
लगे हर नफ़स मिरे हम-नफ़स कि हो हादसा कोई टल गया
थी 'बशर' करीम की रहबरी या उरूज पर थी मुसाफ़िरी
मैं जहाँ जहाँ से गुज़र गया था वहाँ नज़ारा बदल गया
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