हज़ार ग़म जिन्हें घेरें शराब क्यों न पिएं
बता ए साक़ी वो खान-खराब क्यों न पिएं
उजाड़ कर मुझे लिखा है उसने मत पीना
लिखा है मैंने भी उसको जवाब क्यों न पिएं
उन्हें नहीं है कोई हक के गम को भूल सकें
हो जिनके दिल में ग़म-ओ-इज़्तिराब क्यों न पिएं
हिसाब किसको हैं देना के कोई अपना नहीं
तो फ़िर जाना बिन तेरे बे-हिसाब क्यों न पिएं
किसी को ख़ून है पसंद और किसी को हैं पानी
हमारा तो है बस यहीं इंतेखाब क्यों न पिएं
भाग भाग के तेरी यादों के बयाबान में
थक चुका हूँ हमें भी सराब क्यों न पिएं
हमारे हाल से किसको ग़रज़ है दुनिया में
हज़ार बार पिएंगे हम, ज़नाब क्यों न पिएं
सुना हैं जाम है नशाद उनकी मस्तानी आंखों में
तो आज उनको हटा कर नक़ाब क्यों न पिएं
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