वो लोग मेरे बहुत प्यार करने वाले थे
गुज़र गए हैं जो मौसम गुज़रने वाले थे
नई रुतों में दुखों के भी सिलसिले हैं नए
वो ज़ख़्म ताज़ा हुए हैं जो भरने वाले थे
ये किस मक़ाम पे सूझी तुझे बिछड़ने की
कि अब तो जा के कहीं दिन संवरने वाले थे
हज़ार मुझ से वो पैमान-ए-वस्ल करता रहा
पर उस के तौर-तरीक़े मुकरने वाले थे
तमाम रात नहाया था शहर बारिश में
वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे
उस एक छोटे से क़स्बे पे रेल ठहरी नहीं
वहांभी चंद मुसाफ़िर उतरने वाले थे
Our suggestion based on your choice
As you were reading Shayari by Jamal Ehsani
our suggestion based on Jamal Ehsani
As you were reading Baarish Shayari