सोचता रहता हूँ दिन-भर शायरा नइॅं चाहिए
काली गोरी कोई हो पर शायरा नइॅं चाहिए
सच पे थोड़ी पर्दा-दारी चलती है माना मगर
झूठ बोलें ये सरासर शायरा नइॅं चाहिए
ये बताओ भाई कितनी राब्ते में हैं अभी
यार वो तो हैं बहत्तर शायरा नइॅं चाहिए
वैसे तो मेरी ग़ज़ल के शेर सारे ठीक हैं
पर ये वाला हो मुकर्रर शायरा नइॅं चाहिए
महफ़िलों की भीड़ में कुछ महफ़िलें ऐसी भी हों
बस वहाँ पर हों सुख़न-वर शायरा नइॅं चाहिए
बाद शादी के फ़क़त हो जाएँगे ख़र्चे डबल
सब पड़ेंगे मेरे सर पर शायरा नइॅं चाहिए
बात मेरी लिख के रख लो याद करना एक दिन
कुछ गया था जू'न कह कर शायरा नइॅं चाहिए
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