उफ़ ये अदाएँ उफ़ ये नख़रे तुम तो क़यामत ढाती हो
लेकिन ये बतलाओ जानाँ अब किस को बहलाती हो
अगर इजाज़त मुझ को हो तो मैं एक आध सवाल करूॅं
रात गए तुम अपने घर अब तो जल्दी आ जाती हो
ये तो बताओ जान-ए-जानाँ बा'द-ए-वस्ल-ए-विसाल के तुम
उस की भी पेशानी पर बोसा रख कर सो जाती हो
उस ने तो बस जिस्म लिया है दिल तो अब भी तुम्हारा है
इन बातों से दिल दुखता है ये सब क्यूॅं दोहराती हो
तुम तो मुझ पर शक़ करते हो ख़ाला का फोन आया था
ऐसा वैसा ही कुछ कह कर उस को भी समझाती हो
तीर चलाए थे जो तुमने अपनी अदाओं से मुझ पर
ऐसे करतब तीर-ओ-तरकश उस को भी दिखलाती हो
सारी बातें अपनी जगह हैं लेकिन मैं इक बात कहूॅं
चैन नहीं है तुम को भी क्यूॅं ख़्वाबों में आ जाती हो
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