ज़िन्दगी में कही कुछ कमी रह गयी
मेरे होठों पे बस तिश्नगी रह गयी
इतनें अरमानों का कत्ल हमनें किया
हर तमन्ना दबी की दबी रह गयी
दिल झुलसता रहा आतिश-ए-इश्क से
राह में बेकरां तीरगी रह गयी
उनकों जाता हुआ देखकर यूं लगा
नब्ज थम सी गयी और थमी रह गयी
वो जलाता रहा खत मेरे सामने
चश्म-ए-पुरनम झुकी की झुकी रह गयी
याद करते रहें दिल ही दिल में तुझे
शम्अ बुझ के भी जलती हुई रह गयी
अब गम ए जिंदगी से मैं बेफिक्र हूँ
जब कलम पे मेरी शायरी रह गयी
Our suggestion based on your choice
As you were reading Shayari by Lokesh Singh
our suggestion based on Lokesh Singh
As you were reading Zindagi Shayari