दिलों में जिसके मुहब्बत हो हर बशर के लिए
कि ऐसा चाहिए बस हमसफ़र सफ़र के लिए
कटे ये रात मिटे तीरगी भी दुनिया से
नसीब कोई चरागाँ हो अब सहर के लिए
मिले सनम हमें ऐसा जो दिल में घर कर ले
सफ़र भी ज़ीस्त का बेहतर हो फिर गुज़र के लिए
वफ़ा का बस हो मुलाज़िम जो शख़्स यार यहाँ
ग़ुलाम मैं बनूँ उसकी तो उम्र भर के लिए
रही वो बंद फ़क़त बस्तों में तो ऑफ़िस के
कि तरसीं फाइलें हाकिम की इक मुहर के लिए
कहाँ हैं अब तो मयस्सर श्रमिक को हैं ख़ुशियाँ
बहा है जिनका पसीना तो इस नगर के लिए
अवाम जानती है राज़ हर सियासत का
वो मर मिटेगी हर इक बात में असर के लिए
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