हम हमेशा से ही तक़दीर के मारे निकले
गुल जिन्हें समझा था वो यार शरारे निकले
इल्म की जिनको समझ बैठे इमारत अब तक
वो तो पैसों की उगाही के इदारे निकले
डूबना तय था कि मर्ज़ी थी समुंदर की यही
तेरी रहमत से ख़ुदा हम तो किनारे निकले
सारी ख़ूबी थी तुम्हारी तो तुम्हारी ही सही
जितने भी ऐब थे देखो तो हमारे निकले
हमको उम्मीद थी दिल हार न दें महफ़िल में
झूठे पर आज भी दिलबर के इशारे निकले
धोखा उल्फ़त में मिला हमको तो हर्जा कैसा
वो हमारे नहीं निकले न तुम्हारे निकले
ख़ुदकुशी रोज़ ही करती है जवानी देखो
कैसे माँ बाप के आख़िर ये दुलारे निकले
बेजा बदनाम है 'मीना' ये समंदर देखो
तेरे आँसू तो नमक से भी ये खारे निकले
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