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मुसलसल बेकली दिल को रही है - Nasir Kazmi

मुसलसल बेकली दिल को रही है
मगर जीने की सूरत तो रही है

मैं क्यूँ फिरता हूँ तन्हा मारा मारा
ये बस्ती चैन से क्यूँ सो रही है

चले दिल से उम्मीदों के मुसाफ़िर
ये नगरी आज ख़ाली हो रही है

न समझो तुम इसे शोर-ए-बहाराँ
ख़िज़ाँ पत्तों में छुप कर रो रही है

हमारे घर की दीवारों पे 'नासिर'
उदासी बाल खोले सो रही है

- Nasir Kazmi

Dil Shayari

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