अब इस दुनिया से क्या लेना, मैं तो उसकी बाँहों में हूँ
कौन कहाँ किसका कैसा क्या, मैं तो उसकी बाँहों में हूँ
बाहर इतना शोर मचा है आज बड़ी सर्दी है,तो फिर
मुझको क्यों नईं लगती अच्छा, मैं तो उसकी बाँहों में हूँ
ऐसे आख़िर कब तक जीते छुप-छुप कर के इस दुनिया से
छोड़ी सब हमने आज हया, मैं तो उसकी बाँहों में हूँ
तेरी सारी ग़ज़लें-नज़्में इसके आगे फीकी सी हैं
तू मुझसे बढ़कर बात सुना, मैं तो उसकी बाँहों में हूँ
थल से नभ,हर जन हर खग तक बस ये बात रहे चर्चे में
जलने वालों को और जला, मैं तो उसकी बाँहों में हूँ
काश हक़ीक़त कर पाते हम अपने सपनों की नगरी को
ये कितना अच्छा ख़्वाब दिखा, मैं तो उसकी बाँहों में हूँ
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