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एक तुम ही मेरे ख़िलाफ़ नहीं  - Shadab Javed

एक तुम ही मेरे ख़िलाफ़ नहीं
मुझको ख़ुद मेरा एतराफ़ नहीं

यार लहजा बताने लगता है
सामने वाला दिल का साफ़ नहीं

बारगाह ए नज़र में जुम्बिश ए लब
ऐसी गुस्ताखियां मुआफ़ नहीं

लफ़्ज़ टूटे हुए हैं दिल के साथ
आप से ऐन शीन क़ाफ़ नहीं

दोनों प्याले हैं होश के क़ातिल
आज से ज़िक्र ए चश्म ओ नाफ़ नहीं

हिज्र वो सर्दियों का मौसम है
जिस में हासिल कोई लिहाफ़ नहीं

इस कहानी में दोनों ज़िंदा हैं
इस कहानी का इंकेशाफ़ नहीं

आप शादाबियत के मुनकिर हैं
आप से कोई इख़्तेलाफ़ नहीं

- Shadab Javed

Breakup Shayari

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