राह-ए-हासिल का कुछ नहीं मालूम
हमको मंज़िल का कुछ नहीं मालूम
याद है लूटा है किसी ने मुझे
शख़्स-ए- शामिल का कुछ नहीं मालूम
जिस्म तो कब का बुझ चुका होगा
हरकत-ए-दिल का कुछ नहीं मालूम
राह-ए-आख़िर की धुंध याद है बस
और मंज़िल का कुछ नहीं मालूम
डूबने वालों में हैं शामिल हम
हमको साहिल का कुछ नहीं मालूम
सुर्ख़ हाथों को अपने देखा, पर
मुझको क़ातिल का कुछ नहीं मालूम
तुमको बस क़त्ल से ही मतलब है
तुमको बिस्मिल का कुछ नहीं मालूम
उम्र गुज़री क़फ़स में याद है बस
हमको आदिल का कुछ नहीं मालूम
वो कहेगा ख़िरद ही सब कुछ है
उसको इस दिल का कुछ नहीं मालूम
सूरत-ए- 'हैफ़' पे हो हैराँ बहुत
तुमको मुश्किल का कुछ नहीं मालूम
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