किस लिए राज़-ए-जिगर सब को बताना सोहिल
अपनी आदत से तो वाक़िफ़ है ज़माना सोहिल
इक क़सम है वो जिसे भूल गया है शायद
वो निभाए न निभाए तू निभाना सोहिल
चंद अशआर में कैसे ये बता दूँ सब को
कितनी मुश्किल से मिला दिल को ठिकाना सोहिल
उस को आराम मिलेगा वो दुआएँ देगा
टूटते शख़्स को सीने से लगाना सोहिल
गर कोई और नहीं रब तो सुनेगा तेरी
अपने हाथों को दुआओं में उठाना सोहिल
ऐसा लगता है यहाँ हर कोई पत्थर दिल है
अश्क आँखों के कहीं और बहाना सोहिल
तेरी क़िस्मत में फ़क़त दर्द लिखा है प्यारे
अब किसी शख़्स से दिल को न लगाना सोहिल
तेरी मुश्किल का वहीं हल कोई निकले शायद
अपनी तन्हाई को हम-राज़ बनाना सोहिल
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