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ख़ुद पर जब इश्क़ की वहशत को मुसल्लत करूँगा - Tehzeeb Hafi

ख़ुद पर जब इश्क़ की वहशत को मुसल्लत करूँगा
इस कदर ख़ाक उड़ाऊँगा कयामत करूँगा

हिज्र की रात मेरी जान को आई हुई है
बच गया तो मैं मोहब्बत की मज़म्मत करूँगा

अब तेरे राज़ सँभाले नहीं जाते मुझसे
मैं किसी रोज़ अमानत में ख़यानत करूँगा

लयलातुल क़दर गुज़रेंगे किसी जंगल में
नूर बरसेगा दरख़्तों की इमामत करूँगा

- Tehzeeb Hafi

Raaz Shayari

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