सूनी गलियाँ सूना आँगन सूने दर को छोड़कर
ऐसे जाता है भला क्या कोई घर को छोड़कर
कुछ भी अब अपना नहीं रखना है मुझको ज़हन में
उस ख़ुदा की इक मुहब्बत के असर को छोड़कर
पत्ता-पत्ता डाली-डाली को उदासी दे के आज
इक परिन्दा उड़ गया है फिर शजर को छोड़ कर
इश्क़ का पैग़ाम लाने वाले पंक्षी आज भी
सबके घर पर आते हैं बस मेरे घर को छोड़कर
चूमकर जब नाफ़ तक जाने लगा तो कहने लगी
यूँ न जाते बीच में ऐसे सफ़र को छोड़कर
जिसको देखें रेगज़ारों में तो बुझ जाती है प्यास
चल दिए हम बस अना में उस नज़र को छोड़कर
मुझको मीलों तक अँधेरे में अभी भी जाना है
गर तुम्हें जाना हो तो जाओ सफ़र को छोड़कर
सारे के सारे परिन्दे हाय! हिजरत कर गए
उम्र उतरी एक दिन जब इक शजर को छोड़कर
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