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सूनी गलियाँ सूना आँगन सूने दर को छोड़कर - Ved prakash Pandey

सूनी गलियाँ सूना आँगन सूने दर को छोड़कर
ऐसे जाता है भला क्या कोई घर को छोड़कर

कुछ भी अब अपना नहीं रखना है मुझको ज़हन में
उस ख़ुदा की इक मुहब्बत के असर को छोड़कर

पत्ता-पत्ता डाली-डाली को उदासी दे के आज
इक परिन्दा उड़ गया है फिर शजर को छोड़ कर

इश्क़ का पैग़ाम लाने वाले पंक्षी आज भी
सबके घर पर आते हैं बस मेरे घर को छोड़कर

चूमकर जब नाफ़ तक जाने लगा तो कहने लगी
यूँ न जाते बीच में ऐसे सफ़र को छोड़कर

जिसको देखें रेगज़ारों में तो बुझ जाती है प्यास
चल दिए हम बस अना में उस नज़र को छोड़कर

मुझको मीलों तक अँधेरे में अभी भी जाना है
गर तुम्हें जाना हो तो जाओ सफ़र को छोड़कर

सारे के सारे परिन्दे हाय! हिजरत कर गए
उम्र उतरी एक दिन जब इक शजर को छोड़कर

- Ved prakash Pandey

Khuda Shayari

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