Akmal Alduri

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@akmal-alduri

Akmal Alduri shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Akmal Alduri's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
भरोसा फूलों का काँटों का ए'तिबार नहीं
तअ'य्युनात के ख़ाके हैं ये बहार नहीं

मैं कैसे आप के वा'दे का ए'तिबार करूँ
हुज़ूर जब मुझे ख़ुद अपना ए'तिबार नहीं

मिरे शुऊर-ए-मोहब्बत की जिस से ज़िल्लत हो
ख़ुदा के फ़ज़्ल से ऐसा मिरा शिआ'र नहीं

वो बुत-कदा हो कि काबा हो या कि मय-ख़ाना
किसी जगह भी मोहब्बत से मुझ को आर नहीं

उठानी पड़ती है ज़िल्लत क़दम क़दम पे उसे
जहाँ में जिस का सदाक़त अगर शिआ'र नहीं

वो फूल ख़ार है जो गिर गया नज़र से तिरी
वो ख़ार गुल है जो नज़रों में तेरी ख़ार नहीं

किसी की साक़ी के क़दमों पे है जबीन-ए-नियाज़
किसी को साक़ी पे ख़ुद अपने ए'तिबार नहीं

तू अपनी आँखों से साक़ी पिला के बे-ख़ुद कर
पियूँ मैं जाम से ऐसा तो बादा-ख़्वार नहीं

गुनाहगारों पे है जब कि रहमतों का नुज़ूल
कहूँ मैं कैसे फिर 'अकमल' गुनाहगार नहीं
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Akmal Alduri
मक़ाम-ए-आदमियत इम्तिहाँ की मंज़िल है
किसी के वास्ते आसाँ किसी को मुश्किल है

नहीं फ़रेब-ए-ख़ुलूस और ख़ुलूस में कोई फ़र्क़
ब-यक निगाह करें इम्तियाज़ मुश्किल है

यहीं से रास्ते इम्कान के निकलते हैं
हमारा क़ल्ब-ए-मुसफ़्फ़ा इक ऐसी मंज़िल है

मिरा रफ़ीक़ तलव्वुन-मिज़ाज है अपना
कभी है बर्क़ तड़पती हुई कभी दिल है

यही वो दिल है जो बे-मौत मारता है हमें
हमारे सीने के अंदर हमारा क़ातिल है

हमारे अज़्म पे मौक़ूफ़ है क़ियाम-ए-सफ़र
चलें तो रास्ता है रुक गए तो मंज़िल है

ज़बाँ से क्यों कहे वो बात दिल की तू जो सुने
ख़मोश इस लिए हर वक़्त तेरा साइल है

चराग़ कौन जलाता है चौदहवीं शब में
हमारी बज़्म की क़िंदील माह-ए-कामिल है

सुकूँ नसीब ब-ज़ाहिर मुझे मगर 'अकमल'
वतन के वास्ते सीने में दिल तो बिस्मिल है
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एक नई ज़ीस्त लिए आज अजल आई है
क़ैद से हम ने रिहाई ही कहाँ पाई है

उस से मिलने के लिए इस क़दर ऐ दिल न तड़प
मेरा इज़हार-ए-मोहब्बत मिरी रुस्वाई है

इन्क़िलाबात-ए-ज़माना को ज़माना समझे
हम तो कहते हैं कि वो भी तिरी अंगड़ाई है

जिस के शो'लों से हुई हुस्न की रंगत रौशन
आग ऐसी मिरे जज़्बात ने सुलगाई है

हम ने अरमानों की मय्यत को दिया है कांधा
ऐ ग़म-ए-दिल ये तिरी हौसला-अफ़ज़ाई है

है ये डर नूह का तूफ़ाँ न समझ ले दुनिया
चादर-ए-अश्क-ए-वफ़ा हम ने जो फैलाई है

आइना-ख़ाना-ए-दिल में वो ज़रूर आएँगे
उन के दिल में भी तमन्ना-ए-ख़ुद-आराई है

हाथ से साक़ी के पीना ही पड़ेगा मुझे अब
मेरी तौबा-शिकनी बन के घटा छाई है

'अकमल' इंसान वो अकमल है ब-फ़ैज़-ए-फ़ितरत
दर्द-ए-इंसाँ से जिस इंसाँ की शनासाई है
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