Ali Raza Razi

Ali Raza Razi

@ali-raza-razi

Ali Raza Razi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ali Raza Razi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
दिलों में घर बनाना आ गया है
तुम्हें मिलना मिलाना आ गया है

गए हो सीख मुँह पे झूट कहना
तुम्हें अब सच छुपाना आ गया है

तुम्हारे मुँह में ये शोहरत की हड्डी
तुम्हें भी दुम हिलाना आ गया है

सुना है शे'र कहने लग पड़े हो
तुम्हें मिस्रा लगाना आ गया है

पुरानी इक ग़ज़ल का शे'र पढ़ कर
तुम्हें महफ़िल उठाना आ गया है

नहीं सच की कोई वक़अत यहाँ पर
ख़ुदाया क्या ज़माना आ गया है

जो अपने फ़र्ज़ से ग़ाफ़िल रहे थे
उन्हें अब हक़ जताना आ गया है

तुम्हारी मुस्कुराहट कह रही है
तुम्हें भी ग़म छुपाना आ गया है

उठानी आ गई दीवार तुम को
हमें भी दर बनाना आ गया है

मिरे लब पर दुआ है रब्ब-ए-ज़िदनी
ख़ज़ाना ग़ाएबाना आ गया है

'रज़ी' जी भाड़ में जाए मोहब्बत
हमें अब दिल जलाना आ गया है
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Ali Raza Razi
तिरे हाथों में जब हो हाथ तो हम-ज़ोर लगता है
मगर जब साथ चलना हो मिरा क्यूँ ज़ोर लगता है

मोहब्बत के मज़ाहिब में सुनो दोनों ही काफ़िर हैं
तिरा ईमाँ मुझे मेरा तुझे कमज़ोर लगता है

असर कुछ हादसों का यूँ पड़ा मेरी समाअ'त पर
किसी का धीमा लहजा भी मुझे अब शोर लगता है

सुनो इंसान जो इंसानियत से दूर रहता हो
मुझे इंसाँ नहीं लगता वो आदम-ख़ोर लगता है

हमारे दो दिलों के दरमियाँ सरहद है नफ़रत की
वगर्ना साथ अमृतसर ही के लाहौर लगता है

ये जिस शोहरत को तुम इज़्ज़त गँवा कर मो'तबर समझे
कि इज़्ज़त को कमाने में सुनो इक दौर लगता है

ग़ज़ल सारी ही तेरी ठीक है अपनी जगह लेकिन
मुझे मतले' का सानी बस ज़रा कमज़ोर लगता है

हुनर है आप का दिल जीत लेना झूटी बातों से
'रज़ी' सच्ची सुनाता है तभी मुँह-ज़ोर लगता है
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Ali Raza Razi
में पेट से अपने ख़ुद ही कपड़ा उठा रहा हूँ बता रहा हूँ
मैं अपने बच्चों को आज भूका सुला रहा हूँ बता रहा हूँ

बिसात से बढ़ के ख़र्च ख़ुद को किया है मैं ने मिरी ख़ता है
और अब मैं चादर से पाँव अपने छुपा रहा हूँ बता रहा हूँ

अना को अपनी मैं अपने हाथों से हार दूँगा या मार दूँगा
ग़ुरूर को अपने ख़ाक में भी मिला रहा हूँ बता रहा हूँ

मैं ज़ब्त की आख़िरी हदों को न जा सकूँगा मैं रो पड़ूँगा
मैं बात करते हुए तभी कपकपा रहा हूँ बता रहा हूँ

ये ख़ुश-लिबासी ये रख-रखाव सिवा दिखावे के कुछ नहीं है
मैं एक टोपी ही सब के सर पे घुमा रहा हूँ बता रहा हूँ

मैं ज़ुल्मत-ए-शब का शिकवा हरगिज़ नहीं करूँगा डटा रहूँगा
मैं अपने हिस्से की शम्अ' यारो जला रहा हूँ बता रहा हूँ

मैं जानता हूँ जवाब तेरा नहीं में होगा अजीब क्या है
सवाल करते हुए तभी हिचकिचा रहा हूँ बता रहा हूँ

मुझे तो सब कुछ ही याद है मैं सहर का भूला नहीं हूँ यारो
मैं शाम ढलने से पहले ही घर को जा रहा हूँ बता रहा हूँ

ले मेरी जानिब से आज बदले की इंतिहा सुन मिरा ऐलाँ सुन
मैं अपनी नज़रों से आज तुझ को गिरा रहा हूँ बता रहा हूँ

वजूद मेरा है ख़ाक और इस ने ख़ाक में ही है ख़ाक होना
मैं ख़ाक को आसमाँ की जानिब उड़ा रहा हूँ बता रहा हूँ

ये शे'र तो मुझ से बैठे बैठे यूँही हुए हैं कहे नहीं हैं
'रज़ी' मैं मिसरे के साथ मिस्रा लगा रहा हूँ बता रहा हूँ
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Ali Raza Razi