वकीलों से फ़रेबी की क़बीलों से बग़ावत की
निगाहों को पढ़ा जिसने उसे दिल से मुहब्बत की
ख़ुदा भी बोल बैठा ये ग़ज़ब अपवाद है प्यारे
बताओ कौन है जिसने मोहब्बत में शिकायत की
परख के देख ले जो माँग अपनी जान रख दूँगा
ज़रा सा मुस्कुरा दे माँ न कर तू बात क़ीमत की
बहाते आँख से मोती लड़ाते दाल से रोटी
ग़रीबों को हमेशा से सज़ा मिलती इबादत की
सड़क पे आबरू को नोचती बाज़ार गीदड़ है
जलाती याद में फिर मोम-बत्ती चार लानत की
जिन्हें भी देखने का शौक़ है उनको दिखाऊँगा
बिछा के लाश सिक्कों की बना शमशान दौलत की
पली है ज़िंदगी सबकी मिली जो भीख बादल से
जहाँ में कौन करता क़द्र बूॅंदों की इनायत की
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