मैं कभी मकाँ से गुज़र गया कभी ला-मकाँ से गुज़र गया
तिरे शौक़ में तुझे क्या ख़बर मैं कहाँ कहाँ से गुज़र गया
हैं क़दम क़दम पे वहाँ वहाँ मिरी जुस्तुजू की कहानियाँ
तिरे संग-ए-दर की तलाश में मैं जहाँ जहाँ से गुज़र गया
मैं गुनाहगार-ए-वफ़ा हूँ वो जो तलाश-ए-यार के जोश में
जहाँ पेश आईं मुसीबतें ब-खु़शी वहाँ से गुज़र गया
कोई बे-ख़ुदी सी है बे-ख़ुदी मुझे ये भी होश नहीं रहा
तिरा दर्द दिल में लिए मैं कब तिरे आस्ताँ से गुज़र गया
मिरी राह-ए-फ़र्ज़ पे हम-नशीं कहीं हुस्न था कहीं इश्क़ था
मैं ब-फ़ज़्ल-ए-मालिक-ए-दो-जहाँ यूँही दरमियाँ से गुज़र गया
किसे ढूँढती है नज़र तिरी यहाँ कोई अहल-ए-गुनह नहीं
वही इक 'नरेश' था ऐ ख़ुदा जो तिरे जहाँ से गुज़र गया
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