Ejaz Siddiqi

Ejaz Siddiqi

@ejaz-siddiqi

Ejaz Siddiqi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ejaz Siddiqi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
नूर की किरन उस से ख़ुद निकलती रहती है
वक़्त कटता रहता है रात ढलती रहती है

और ज़िक्र क्या कीजे अपने दिल की हालत का
कुछ बिगड़ती रहती है कुछ सँभलती रहती है

ज़ेहन उभार देता है नक़्श हाल ओ माज़ी के
इन दिनों तबीअत कुछ यूँ बहलती रहती है

तह-नशीन मौजें तो पुर-सुकून रहती हैं
और सतह-ए-दरिया की मौज उछलती रहती है

चाहे अपने ग़म की हो या ग़म-ए-ज़माना की
बात तो बहर-सूरत कुछ निकलती रहती है

ज़िंदगी है नाम उस का ताज़गी है काम उस का
एक मौज-ए-ख़ूँ दिल से जो उबलती रहती है

कैफ़ भी है मस्ती भी ज़हर भी है अमृत भी
वो जो जाम-ए-साक़ी से रोज़ ढलती रहती है

आज भी बुरी क्या है कल भी ये बुरी क्या थी
इस का नाम दुनिया है ये बदलती रहती है

होती है वो शेरों में मुनअकिस कभी 'एजाज़'
मुद्दतों घुटन सी जो दिल में पलती रहती है
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Ejaz Siddiqi
वहशत-ए-आसार-ओ-सुकूँ सोज़ नज़ारों के सिवा
और सब कुछ है गुलिस्ताँ में बहारों के सिवा

अब न बे-बाक-निगाही है न गुस्ताख़-लबी
चंद सहमे हुए मुबहम से इशारों के सिवा

साक़िया कोई नहीं मुजरिम-ए-मय-खाना यहाँ
तेरे कम-ज़र्फ़-ओ-नज़र बादा-गुसारों के सिवा

हसरतें उन में अभी दफ़्न हैं इंसानों की
नाम क्या दीजिए सीनों को मज़ारों के सिवा

दूर तक कोई नहीं है शजर-ए-साया-दार
चंद सूखे हुए पेड़ों की क़तारों के सिवा

आप कहते हैं कि गुलशन में है अर्ज़ानी-ए-गुल
अपने दामन में तो कुछ भी नहीं ख़ारों के सिवा

मंज़िल-ए-शौक़ में इक इक को दिया इज़्न-ए-सफ़र
कोई भी तो न मिला जादा-शुमारों के सिवा

ज़ोर-ए-तूफ़ाँ तो ब-हर-हाल है ज़ोर-ए-तूफ़ाँ
किस से टकराएगी मौज अपनी किनारों के सिवा

कौन इस दौर के इंसाँ का मुक़द्दर बनता
चंद आवारा-ओ-मनहूस सितारों के सिवा

कितने क़दमों की ख़राशों से लहू रिसता है
किस को मा'लूम है ये राह-गुज़ारों के सिवा

बात करते हैं वो अब ऐसी ज़बाँ में 'एजाज़'
कोई समझे न जिसे नामा-निगारों के सिवा
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Ejaz Siddiqi
मिल सकेगी अब भी दाद-ए-आबला-पाई तो क्या
फ़ासले कम हो गए मंज़िल क़रीब आई तो क्या

है वही जब्र-ए-असीरी और वही ग़म का क़फ़स
दिल पे बन आई तो क्या ये रूह घबराई तो क्या

अपनी बे-ताबी-ए-दिल का ख़ुद तमाशा बन गए
आप की महफ़िल के बनते हम तमाशाई तो क्या

बात तो जब है कि सारा गुलिस्ताँ हँसने लगे
फ़स्ल-ए-गुल में चंद फूलों की हँसी आई तो क्या

लाओ इन बे-कैफ़ियों ही से निकालें राह-ए-कैफ़
वक़्त अब लेगा कोई पुर-कैफ़ अंगड़ाई तो क्या

कम-निगाही ने उसे कुछ और गहरा कर दिया
वो छुपाते ही रहें रंग-ए-शनासाई तो क्या

फिर ज़रा सी देर में चौंकाएगा ख़्वाब-ए-सहर
आख़िर-ए-शब जागने के बा'द नींद आई तो क्या

बेड़ियाँ वहम-ए-तअ'ल्लुक़ की नई पहना गए
दोस्त आ कर काटते ज़ंजीर तन्हाई तो क्या

शोरिश-ए-अफ़्कार से 'एजाज़' दामानदा सही
छिन सकेगी फिर भी फ़िक्र-ओ-फ़न की रा'नाई तो क्या
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Ejaz Siddiqi