J. P. Saeed

J. P. Saeed

@j-p-saeed

J. P. Saeed shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in J. P. Saeed's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
थम गए अश्क भी बरसे हुए बादल की तरह
दिल की बेताबी वही आज भी है कल की तरह

मैं भी हूँ अश्क-फ़िशाँ आप अकेले ही नहीं
मेरा दामन भी है नम आप के आँचल की तरह

जाम-ओ-साग़र ही पे मौक़ूफ़ नहीं है साक़ी
हम भी गर्दिश में हैं इक दौर-ए-मुसलसल की तरह

इंतिज़ार-ए-शब-ए-वा'दा की न पूछो रूदाद
रात आँखों में कटी है किसी बेकल की तरह

किसी उम्मीद का मस्कन न तमन्ना का महल
दिल की वीरानी है सुनसान से जंगल की तरह

आप जल जाए मगर औरों को महज़ूज़ करे
ज़िंदगी तुम भी गुज़ारो यूँ ही संदल की तरह

तेरे जलने से अगर तीरगी कम हो ऐ दिल
तू भी जल जा किसी जलती हुई मशअ'ल की तरह

लाशें बिखरी हैं तमन्नाओं की अरमानों की
क़ल्ब का गंज-ए-शहीदाँ भी है मक़्तल की तरह
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J. P. Saeed
अहबाब मिरे दर्द से कुछ बे-ख़बर न थे
ये और बात है वो कोई चारागर न थे

ताक़त थी जब बदन में तो दरवाज़ा बंद था
जब दर खुला क़फ़स का मिरे बाल-ओ-पर न थे

अंजान हम थे राह से मंज़िल भी दूर थी
अच्छा हुआ कि आप शरीक-ए-सफ़र न थे

इस वास्ते भी मुझ को तिरा ग़म अज़ीज़ है
जितने भी ग़म मिले वो ग़म मो'तबर न थे

तारीक रात का था सफ़र राह पुर-ख़तर
रौशन कहीं चराग़ सर-ए-रहगुज़र न थे

वो दिन भी क्या थे दिल में तमन्ना न थी कोई
तकमील-ए-आरज़ू के लिए दर-ब-दर न थे

सैलाब-ओ-ज़लज़ले में हुए कितने घर तबाह
वो लोग बे-नियाज़ रहे जिन के घर न थे

कुछ लोग मिल गए थे यूँही राह में मुझे
जो मेरे साथ साथ थे वो हम-सफ़र न थे

सब ने मिरा कलाम पढ़ा लेकिन ऐ 'सईद'
जो मेरे नाक़िदीन थे वो दीदा-वर न थे
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J. P. Saeed
शिकस्त-ओ-फ़त्ह-ए-मुक़ाबिल से बे-नियाज़ तो है
ब-फ़ैज़-ए-दार-ओ-रसन इश्क़ सरफ़राज़ तो है

उसी से निकलेंगे नग़्मात-ए-ज़िंदगी-परवर
शिकस्ता ही वो सही दिल भी एक साज़ तो है

हज़ार क़िस्मत-ओ-माहौल ज़िम्मेदार सही
मिरी तबाही से उन का भी साज़-बाज़ तो है

ग़ुरूर-ए-हुस्न सलामत मगर ये क्या कम है
हमारा दिल भी हरीफ़-ए-निगाह-ए-नाज़ तो है

हुआ है फ़ाश जहाँ पर ज़बाँ पे आए बग़ैर
दिल-ओ-निगाह के माबैन कोई राज़ तो है

अता-ए-बादा के इंकार से ये भेद खुला
कि मय-कशों में तिरे पास इम्तियाज़ तो है

मुझे तलाश-ए-मसर्रत की क्या ज़रूरत है
ख़ुशी ये कम नहीं दिल मेरा ग़म-नवाज़ तो है

नहीं 'सईद' मिरे पास शौकत-ए-अल्फ़ाज़
मिरी ग़ज़ल में मगर क़ल्ब का गुदाज़ तो है
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J. P. Saeed
ये किस ने तुम से ग़लत कहा मुझे कारवाँ की तलाश है
जहाँ मैं हूँ तुम हो कोई न हो मुझे इस जहाँ की तलाश है

लिए ज़ौक़-ए-सज्दा में दर-ब-दर फिरा मैं ने पाया नहीं मगर
जहाँ अपने आप झुके जबीं इसी आस्ताँ की तलाश है

न है वस्ल की कोई आरज़ू न तो हिज्र की कोई गुफ़्तुगू
जो शिकार हो ग़म-ए-इश्क़ का उसी राज़-दाँ की तलाश है

उसे दो ख़बर कि वो आशियाँ जो है सोज़ क़ल्ब से ज़ौ-फ़िशाँ
ये सुना है मैं ने कि बर्क़ को मिरे आशियाँ की तलाश है

मिरे शौक़-ए-दीद की आरज़ू नहीं चंद फूलों की जुस्तुजू
मिरे रंग-ओ-बू के मज़ाक़ को किसी गुलिस्ताँ की तलाश है

मिरे दिल में ग़म का जो ख़ार है मिरा दिल उसी पे निसार है
जिसे मेरे दर्द का दर्द हो उसी मेहरबाँ की तलाश है

किसी दिल में कोई मकीन है किसी दर पे कोई जबीन है
जहाँ हो न कोई मिरे सिवा मुझे उस मकाँ की तलाश है
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J. P. Saeed
यक़ीन जिस का है वो बात भी गुमाँ ही लगे
वो मेहरबान है लेकिन बला-ए-जाँ ही लगे

हम इतनी मर्तबा गुज़रे हैं आज़माइश से
वो सीधी बात भी पूछे तो इम्तिहाँ ही लगे

तरस गए हैं कि खुल कर किसी से बात करें
हर आश्ना हमें ग़ैरों का राज़दाँ ही लगे

हो जैसे कैफ़ियत-ए-दिल का आइना मंज़र
वो हम-सफ़र हो तो सहरा भी गुलिस्ताँ ही लगे

मैं जैसे मरकज़ी किरदार हूँ कहानी का
कोई फ़साना हो वो मेरी दास्ताँ ही लगे

तिरे ख़याल से निस्बत का अब ये आलम है
कहीं झुकाऊँ जबीं तेरा आस्ताँ ही लगे

मिरे वतन के सभी लोग चाँद-तारे हैं
ज़मीन उस की मुझे जैसे आसमाँ ही लगे

'सईद' बाद-ए-समाअ'त नवा-ए-मुतरिब है
ख़ुशी का गीत भी अब नग़्मा-ए-फुग़ाँ ही लगे
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J. P. Saeed
कुछ याद नहीं उस को कि क्या भूल गया है
दिल जैसे कि जीने की अदा भूल गया है

मौसम के बदलते ही मिज़ाज उस का भी बदला
वो मेरी वफ़ाओं का सिला भूल गया है

मैं याद हूँ जिस शख़्स को सीने से लगाए
वो शख़्स तो अब नाम मिरा भूल गया है

कानों पे है बस एक सदा का तिरी पहरा
हर एक सदा उस के सिवा भूल गया है

बीमार को उस सम्त नहीं फ़िक्र-ए-मुदावा
उस सम्त मुआलिज भी दवा भूल गया है

मा'लूम करें पूछ के कुछ उस से सवालात
क्या याद है उस शख़्स को क्या भूल गया है

क़िर्तास ने हर एक अमल कर लिया महफ़ूज़
मुजरिम ही मगर अपनी ख़ता भूल गया है

पादाश में आ'माल की नज़रों से गिरा कर
लगता है कि अब हम को ख़ुदा भूल गया है

इल्ज़ाम न दो तुम नए शाइ'र को 'सईद' आज
जो सुर्ख़ी-ए-लब रंग-ए-हिना भूल गया है
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J. P. Saeed