है बड़ी अजीब ये जिंदगी की ये मौत ही की ग़ुलाम है
यहाँ कौन है जो बिका नही है लगा सभी का ही दाम है
यहाँ लोग मिलते है प्यार से जो अगर हुआ कोई काम है
नहीं पूछते हैं ग़रीब को की अमीर को ही सलाम है
जो ज़रा सा पी के बहक गया नहीं उसका कोई भी काम है
ये है मय-कदा यहाँ रिंद है यहाँ अहल-ए-ज़र्फ़ का नाम है
न रही दुआ में वो बरकतें न ही अज़्म में वो बुलंदियाँ
यहाँ झूठ को ही सलाम है यहाँ सत्य रहता ग़ुलाम है
ये गवाह सब हैं बिके हुए सभी झूठ पे हैं टिके हुए
तिरा फ़ैसला है क़बूल पर बता क्या लगा तिरा दाम है
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