Ved Prakash Malik Sarshar

Ved Prakash Malik Sarshar

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Ved Prakash Malik Sarshar shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ved Prakash Malik Sarshar's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
सैंकड़ों ग़म की सौग़ात दे कर मुझे
फिर ये कहते हैं हम ने दिया कुछ नहीं

और भी कुछ बचा हो तो दे दो हमें
ताकि ये कह सको के बचा कुछ नहीं

तुम गिरा दो नज़र से किसी को अगर
इस से बढ़ कर तो उस की सज़ा कुछ नहीं

कर तो लूँ ज़िंदगी में मोहब्बत सनम
पर मोहब्बत में ग़म के सिवा कुछ नहीं

चल के थक जाइए थक के मर जाइए
ये वो मंज़िल है जिस का पता कुछ नहीं

क्या हुआ है बता क्यों है मुझ से ख़फ़ा
मैं ने अब तक तो तुझ से कहा कुछ नहीं

एक तेरी मोहब्बत का था आसरा
अब मिरी ज़िंदगी में रहा कुछ नहीं

थी ये हसरत की उन से मिला दीजिए
हम को मिल के भी उन से मिला कुछ नहीं

कर दिया है मुझे उस ने बर्बाद यूँ
कि गया कुछ नहीं और रहा कुछ नहीं

यूँ बनाने को सब कुछ बनाया गया
पर मगर उस से अपना बना कुछ नहीं
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Ved Prakash Malik Sarshar
मुश्किलों में पड़ गए अपना ख़ुदा कह कर तुझे
तू ही कह दे हम पुकारें और क्या कह कर तुझे

हाल-ए-दिल कहने की क्या अब भी ज़रूरत रह गई
जब पुकारा हम ने अपना दिल-रुबा कह कर तुझे

जादा-ए-मंज़िल पे खा कर ठोकरें होश आ गया
किस क़दर ख़ुश थे हम अपना रहनुमा कह कर तुझे

तेरे होते तेरी दुनिया में ये बेदाद-ओ-सितम
लोग पछताने लगे अपना ख़ुदा कह कर तुझे

इक ज़माना हम से ग़ुस्सा है ये हम ने क्या किया
सब को छोटा कर दिया सब से बड़ा कह कर तुझे

सारी दुनिया से अदावत मोल ले ली मुफ़्त में
हम ने अपना दोस्त अपना हम-नवा कह कर तुझे

आह ये अपना सफ़ीना और गिर्दाब-ए-बला
सख़्त शर्मिंदा हुए हम नाख़ुदा कह कर तुझे

किस तरह ये हम वफ़ादारों से देखा जाएगा
लोग महफ़िल में पुकारें बेवफ़ा कह कर तुझे

और भी उन की निगाहों में मोहज़्ज़ब हो गया
क्या मिला 'सरशार' दिल का माजरा कह कर तुझे
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Ved Prakash Malik Sarshar
जल्वे को पर्दा पर्दे को जल्वा बना दिया
अहल-ए-नज़र को तुम ने तमाशा बना दिया

ज़र्रे को महर क़तरे को दरिया बना दिया
तेरी नज़र ने क्या से हमें क्या बना दिया

हक़ ने तुम्हें बड़ा हमें छोटा बना दिया
जो कुछ बना दिया बहुत अच्छा बना दिया

क्या पूछते हो हम ने तुम्हें क्या बना दिया
रूह-ए-हयात जान-ए-तमन्ना बना दिया

सरमस्ती-ए-बहार का आलम न पूछिए
हर गुल कि उस ने साग़र-ओ-सहबा बना दिया

दुनिया हमारे वास्ते दोज़ख़ से कम न थी
दुनिया को तेरे इश्क़ ने दुनिया बना दिया

इस दिल का हाल पूछ रहे हैं वो बार-बार
जिस दिल को बे-नियाज़-ए-तमन्ना बना दिया

देखें लहू से भरता है अब इस में रंग कौन
हम ने नई बहार का नक़्शा बना दिया

जब कोई आँख तेरा नज़्ज़ारा न कर सकी
जैसा किसी के ज़ेहन में आया बना दिया

'सरशार' उन के ग़म का ये एहसाँ भी ख़ूब है
दुनिया को ग़म-गुसार हमारा बना दिया
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