घुटन में जी रहे हैं आदमी खिड़की नहीं मिलती
हुए हैं शह्र सब भट्टी हवा ठंडी नहीं मिलती
असर सरमायादारी का हुआ बाज़ार पे यूँ है
हमारे देस में ही चीज़ अब देसी नहीं मिलती
कहीं दिल तो, कहीं पे लम्स अपना छोड़ आयी है
यहाँ पे कोई भी लड़की मुकम्मल ही नहीं मिलती
दिखेगा हाथ में जब कुछ तभी कुछ हाथ आएगा
अगर जो हाथ ख़ाली हों तो कौड़ी भी नहीं मिलती
लगाना जान तक का दाँव पड़ता है मुहब्बत में
मुहब्बत और चीज़ों की तरह सस्ती नहीं मिलती
दिखा तेज़ाब की बोतल तू धमकाता है लड़की को
अबे उल्लू ये उल्फ़त यूँ ज़बरदस्ती नहीं मिलती
मुकम्मल ज़िन्दगी दुश्वारियों को ढोना पड़ता है
भला ऐसे यूँ आसानी से आसानी नहीं मिलती
है आख़िर-कार मिल जाता कोई तो हम-सफ़र सब को
मगर सब को मुहब्बत साहिबो पहली नहीं मिलती
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