ख़यालों से नहीं जाता वो चेहरा क्या मुसीबत है
करूँ पर याद तो भी वो न आता क्या मुसीबत है
तेरा पहना हुआ कुर्ता बता मैं किसलिए धोता
ये ख़ुशबू ख़ुद नहीं जाती बताना क्या मुसीबत है
मैं सारे फूल चुन लाया बगीचे से जो सुंदर थे
मगर अब सोच में हूँ क्या करूँगा क्या मुसीबत है
वो जिसने क़त्ल देखा था मेरा वो थे सभी गूँगे
गवाही कौन दे अब यार मौला क्या मुसीबत है
अभी निकला दिसम्बर और लो अब जनवरी आई
कभी इक साल का भी फ़ासला था क्या मुसीबत है
हमेशा ज़िंदगी की दौड़ में मैं रेंगता आया
परेशाँ हैं गिराने को ये लड़का क्या मुसीबत है
Read Full