मुझे इतनी मुहब्बत हो चुकी है
कि मिल पाने की हिम्मत खो गई है
मेरा दिल है अमावस का अँधेरा
तुम्हारी याद जैसे चाँदनी है
मैं तुम से ले सकूँ कोई इजाज़त
मुझे इतनी इजाज़त कब मिली है
मिटा दे वहशतों को ज़िंदगी से
तुम्हारे हुस्न में वो ताज़गी है
मेरी आँखों को ठंडक दे गई है
तेरी मुस्कान में जो चाँदनी है
तुम्हें तो हक़ भी है सब भूलने का
मेरा तो याद करना लाज़मी है
जो सब कुछ चाहिए था पा लिया है
मगर तेरी कसक तो रह गई है
तुम्हारा दिल अगर अब भी न पिघले
तो फिर किस काम की ये शाइरी है
मुझे मालूम है तुम क्या कहोगी
ज़रा सा वाह लिखना बेरुख़ी है
तेरा होना तेरा मिलना ग़ज़ब है
ये सब महसूस करना जादुई है
मुझे ये रात छोटी लग रही है
ग़ज़ल ये लंबी होती जा रही है
-अमान
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