हम पे होगा ही नहीं तेरा असर आज के बाद
तुझ पे डालेंगे न हम एक नज़र आज के बाद
तेरी उल्फ़त में जलाया है बहुत क़ल्ब-ओ-जिगर
पर जलाएँगे न हम क़ल्ब-ओ-जिगर आज के बाद
रंज बख़्शा है कुछ इस तरह मसाफ़त ने हमें
हम न होंगे कभी सरगर्म-ए-सफ़र आज के बाद
उम्र गुज़री है तिरी राह-गुज़र में लेकिन
भूल जाएँगे तिरी राह-गुज़र आज के बाद
हम कि इक रिन्द-ए-बलानोश हमें होश कहाँ
शैख़ तौबा तो करेंगे ही मगर आज के बाद
और होगी ही नहीं गिर्या-ओ-ज़ारी हम से
यूँ ही तड़पेंगे न हम शाम-ओ-सहर आज के बाद
अब तो 'शादाब' ये ख़्वाहिश है कहीं भी हम को
कोई देखे न ब-अंदाज़-ए-दिगर आज के बाद
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