लरज़ रहे हैं मेरे होंठ ये बताते हुए
मैं जल गया हूँ किसी जिस्म को बुझाते हुए
ये बात सोच के आ जाती है लबों पे हँसी
तू मुझ से रूठ गया था मुझे मनाते हुए
ख़ुदा के वास्ते तस्वीर खींच लेना मेरी
अगर कहीं मैं नज़र आऊँ मुस्कुराते हुए
ख़याल मैंने रखा है ख़याल तेरा बहुत
ख़याल रखना हमेशा ख़याल जाते हुए
लहू से भर गए गुलशन में दोनों हाथ मिरे
किसी गुलाब की आँखों से खर हटाते हुए
वो इतना टूट गया था किसी की फ़ुर्क़त में
कि रो रहा था मुझे दास्ताँ सुनाते हुए
लहू से अपने जलाया है मैंने हक़ का दिया
सबा ख़याल ये करना दिया बुझाते हुए
हमारे हाथों पे तारी है लर्ज़ा आज तलक
तुम्हारे हाथ नहीं काँपे ज़ुल्म ढाते हुए
ये रंज-ओ-ग़म सभी क़िस्मत का एक बाब है क्या
जहाँ से जाऊँगा शायद इन्हें उठाते हुए
हैं जब से ख़्वाबों की वीरान बस्तियाँ ये 'शजर'
ये ख़्वाब डरते हैं आँखों में घर बनाते हुए
तमाम दुनिया ये तारीख़ में पढ़ेगी 'शजर'
मिटाने वाले मुझे मिट गए मिटाते हुए
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