हुस्न के शहर में इक न इक दिन कहीं आपके दिल के अरमाँ कुचल जाएँगे
आपका जिस्म ज़ख़्मों से भर जाएगा आतिश-ए-इश्क़ में पाँव जल जाएँगे
फूल कलियाँ शजर तितलियाँ बाग़बाँ सब के सब उसकी सोहबत में ढल जाएँगे
पत्थरों से अगर वो करे गुफ़्तुगू मोम की मिस्ल पत्थर पिघल जाएँगे
इस तरह से शब-ए-ग़म मनाएँगे हम आपकी याद में दिल जलाएँगे हम
चाक कर लेंगे अपने गिरेबान को आज हर हद से आगे निकल जाएँगे
बज़्म में हुस्न वालों की जाते हुए इसलिए ख़ौफ़ आता है हरदम मुझे
बज़्म में दोस्तों हज़रत-ए-दिल अगर हुस्न को देख लेंगे मचल जाएँगे
फ़िक्र छोड़ो हमारी हमें अपनी तुम इन नशीली निगाहों से अब जाम दो
जाम पीकर ज़रा लड़खड़ाएँगे हम लड़खड़ाकर मगर फिर सँभल जाएँगे
जाँ-निसारी के जो आपसे रात दिन दावे करते हैं ये याद रखना शजर
तुम हिसार-ए-मुसीबत में आओगे और दोस्त अहबाब फ़ौरन बदल जाएँगे
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