लबों पे मेरे तबस्सुम रहा दुहाई न थी
कि मैंने हिज्र की ईज़ा कभी उठाई न थी
शब-ए-विसाल के मानिंद सोचता हूँ सदा
हसीं से क्यों ये हसीं तर शब-ए-जुदाई न थी
कमाल है ये तिरे हाथ का ख़ुदा की क़सम
वगरना पहले तो तस्वीर मुस्कुराई न थी
हमें यक़ीन है सीने में उसके दिल था मगर
मलाल ये है कि उस दिल में दिलरुबाई न थी
तिरे बग़ैर यूँ महफ़िल सजा के रोने लगा
तिरे बग़ैर जो महफ़िल कभी सजाई न थी
मुआशरे में था इफ़लास अब से पहले मगर
ये बे-रिदाई ये मक्कारी बे-हयाई न थी
ये फ़न तो तुमसे बिछड़ने के बाद आया है
शजर में पहले कमाल-ए-ग़ज़ल सराई न थी
यज़ीद-ए-वक़्त के हामी हुए वही सब लोग
जहाँ में जिनकी शजर फ़िक्र कर्बलाई न थी
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