सँवर गया है दिल मिरा बिखर गया था जो कभी
झुका है आज आसमाॅं हुई है कुछ सहर-गरी
ये ज़िंदगी तो खेल है समझ सका न कोई भी
ये दुश्मनी है काम की करी है जो अभी-अभी
बदल रही है ज़िंदगी सफ़र में वो मिला है जो
ये शाम तो हसीन है गुज़र गई हँसी-ख़ुशी
तराशता है कुछ मुझे बना दिया है काॅंच-सा
बड़ा ही ख़ूब काम है कमाल की बनावरी
तलाश है वो नज़्म की बनी जो उसके वास्ते
हाॅं चल रही है दरमियाँ दिलों में इक कशा-कशी
सुला रहा है गोद में कोई मुझे यूॅं चैन से
ये पल बड़े अज़ीज़ हैं जो बन गए सुख़न-वरी
ख़लल पड़ा है साॅंस में जो धड़कनों में क़ैद है
ये टूट कर बिखर गई तो बन गई है शायरी
ग़ज़ल है ये अजीब सी रुला रही मुझे बहुत
ये दास्तान प्यार की बना रही क़लम-कशी
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