ये इल्ज़ाम भी आप रख दो हमीं पर
फ़लक आ गिरा है ज़मीं पे कहीं पर
सिकंदर के बारे में तुम जानते हो
मरा था वो ज़ाफ़िर वो फ़ातेह यहीं पर
यक़ीं का पता जब मिला है गुमाँ से
यक़ीं क्यों करूँ मैं बताओ यक़ीं पर
As you were reading Shayari by Abdulla asif Asif
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