किस सलीक़े से शब-ए-हिज्राँ सजा लेते हैं हम
तू नहीं तो तेरी यादों को बुला लेते हैं हम
दर्द-ए-दिल सोज़-ए-जिगर उफ़्तादगी-ए-जिस्म-ओ-जाँ
बोझ भारी है मगर फिर भी उठा लेते हैं हम
शाम-ए-ग़म को और भी रंगीं बनाने के लिए
मय में कुछ ख़ून-ए-तमन्ना भी मिला लेते हैं हम
हाल-ए-दिल अपना किसी पर क्या खुले कैसे खुले
इक हँसी की आड़ में सौ ग़म छुपा लेते हैं हम
साज़ के तारों से हमने कुछ तो सीखा है सबक़
चोट जब पड़ती है दिल पर गुनगुना लेते हैं हम
तेरे दर से जो भी मिल जाए मुबारक है हमें
फूल हो या ख़ार सीने से लगा लेते हैं हम
तेरी क़ुर्बत देख ली जल्वे भी तेरे चुन लिए
अब इजाज़त हो तो अपना रास्ता लेते हैं हम
ज़िंदगी भर तो 'बशर' हम राह में हाइल रहें
आज तेरी राह से ख़ुद को हटा लेते हैं हम
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