0

क़रार पाते हैं आख़िर हम अपनी अपनी जगह - Basir Sultan Kazmi

क़रार पाते हैं आख़िर हम अपनी अपनी जगह
ज़ियादा रह नहीं सकता कोई किसी की जगह

बनानी पड़ती है हर शख़्स को जगह अपनी
मिले अगरचे ब-ज़ाहिर बनी-बनाई जगह

हैं अपनी अपनी जगह मुतमइन जहाँ सब लोग
तसव्वुरात में मेरे है एक ऐसी जगह

गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी
वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह

किए हुए है फ़रामोश तू जिसे 'बासिर'
वही है अस्ल में तेरा मक़ाम तेरी जगह

- Basir Sultan Kazmi

Miscellaneous Shayari

Our suggestion based on your choice

More by Basir Sultan Kazmi

As you were reading Shayari by Basir Sultan Kazmi

Similar Writers

our suggestion based on Basir Sultan Kazmi

Similar Moods

As you were reading Miscellaneous Shayari