उसको मुझ पर जो प्यार आ जाए
मुझको लाज़िम क़रार आ जाए
बेमआनी जहाँ तअल्लुक़ हों
फिर न कैसे दरार आ जाए
जब भी क़द पर गुमान होता हैं
सामने देवदार आ जाए
अब तो चाहत इबादतों में भी
हाथ में बस शिकार आ जाए
तेरे जैसा अगर मुख़ालिफ़ हो
फिर तो आती है हार आ जाए
ज़िन्दगी है अगर ख़फ़ा मुझसे
कैसे मुमकिन बहार आ जाए
दौर-ए-ग़ुरबत में जो भी जीता है
उस पे कैसे न भार आ जाए
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