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इश्क़ करने का अजी तुम में हुनर है ही नहीं  - Gagan Bajad 'Aafat'

इश्क़ करने का अजी तुम में हुनर है ही नहीं
इश्क़ कैसा जो उधर है और इधर है ही नहीं

छोड़ कर उनको कहाँ जाएँगे इतनी रात में
रह गुज़र हमसे ख़फ़ा है और घर है ही नहीं

क्या करेंगे इश्क़ करके घर में सौ सौ काम हैं
इश्क़ का किस्सा कहीं भी मुख़्तसर है ही नहीं

नाती पोते हो चुके हैं उनके भी और मेरे भी
दिल लगाने की हमारी अब उमर है ही नहीं

चाँद तारे सब नज़ारे जिसके आगे कुछ नहीं
पर करें क्या हम जिधर हैं वो उधर है ही नहीं

रो पड़े थे आप क्यूँ जब वो किसी के साथ थी
रोना ही क्यूँ जब के दिल में कुछ अगर है ही नहीं

इश्क़ का किस्सा खुला घर पर सटाके वो पड़े
रंग बदले खाल के असली कलर है ही नहीं

देने वाले ने दिए है ज़िंदगी के चार दिन
इश्क़ जिसमें ता-सहर है उम्र भर है ही नहीं

आपको ही हो मुबारक आपका ये मशवरा
बा-हुनर है बा-असर है कारगर है ही नहीं

छुप के मिलने का मज़ा तुम ना समझ पाओगे कि
पकड़े जाने का अजी तुमको तो डर है ही नहीं

इश्क़ तो ऐसी है बीमारी जिसका कोई हल नहीं
इस बिमारी के लिए तो चारागर है ही नहीं

जिनका होना या न होना एक जैसी बात है
उनकी भी है ये शिकायत के कदर है ही नहीं

उसने पूछा मेरी ख़ातिर यार को छोड़ोगे तुम
हमने दे दी मुंह पर गाली के सबर है ही नहीं

इतने गुंडे हमने पाले यार इस दिन के लिये
हमसफ़र गर हम नहीं तो रह गुज़र है ही नहीं

यार हमसे जो करा ले उनको हक हमने दिया
यारियाँ वो है जहाँ लेकिन मगर है ही नहीं

आपका अहसान ठहरा आप पे भी मुझ पे भी
आप मेरे हो चुके मुझको ख़बर है ही नहीं

- Gagan Bajad 'Aafat'

Rang Shayari

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