मशवरा देते इस्तिख़ारे हैं
तुम हमारे हो हम तुम्हारे हैं
क्या ज़माना सताएगा हमको
हम तो तक़दीर के ही मारे हैं
साथ उनके गुज़ारे जो लम्हे
हिज्र के बस वही सहारे हैं
दो निवाले मिले न खाने को
ऐसे दिन भी कभी गुज़ारे हैं
वस्ल की शब है जगमगाती हुई
कितने दिलकश हसीं नज़ारे हैं
ये मुकम्मल कभी न हो पाए
ख़्वाब दिल के सभी कुँवारे हैं
अपना साया जुदा हुआ मीना
ज़ीस्त से ख़ुद की हम तो हारे हैं
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