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शिखर पे चढ़के बैठे थे एहतियात के - Murli Dhakad

शिखर पे चढ़के बैठे थे एहतियात के
मौसम सभी गुजर गए बरसात के

हम रोशनी के तलबगार लोग हैं
हम मुसाफिर हैं स्याह रात के

नहीं काँटो को भी ये मंजूर
फूल कोई तोड़ा जाए बिना बात के

देखिए महरूम होते चले गए हैं
मेरे दोस्त सभी मेरी ज़ात के

नहीं है ग़म-ए-हयात से ये जख़्म
ये जख़्म है खुद अपने जज़्बात के

- Murli Dhakad

Mausam Shayari

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