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कहीं खो न जाना ज़रा दूर चल के  - Swapnil Tiwari

कहीं खो न जाना ज़रा दूर चल के
मुसाफ़िर तिरी ताक में हैं धुँदलके

मिरा नींद से आज झगड़ा हुआ है
सो लेते हैं दोनों ही करवट बदल के

इसी डर से चलता है साहिल किनारे
कहीं गिर न जाए नदी में फिसल के

अजब बोझ पलकों पे दिन भर रहा है
अगरचे तिरे ख़्वाब थे हल्के हल्के

जताते रहे हम सफ़र में हैं लेकिन
भटकते रहे अपने घर से निकल के

अँधेरे में मुबहम हुआ हर नज़ारा
मिली एक दूजे में हर शय पिघल के

ज़माने से सारे शरर चुन ले 'आतिश'
यही तो अनासिर हैं तेरी ग़ज़ल के

- Swapnil Tiwari

Life Shayari

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