टूटे दिल, शीशे की चाहत नहीं देखी जाती
अब किसी हाल ये सूरत नहीं देखी जाती
अपनें बन्दों को खुदा बख़्श दे बरकत, हमसे
मुफलिसों की यूँ अज़ीयत नहीं देखी जाती
दिल को अक्सर ये ही दिक्कत रही, के लोगों से
ज़ात के आगे मोहब्बत नहीं देखी जाती
एक शब वस्ल की सोहबत में गुज़ारी हमने
और तब से शबे-फुर्कत नहीं देखी जाती
ये जो तुम तितली के पर नोचते हो अक्सर ,क्या
तुमसे इक तितली की ज़ीनत नहीं देखी जाती
तेरे नफरत के वो किस्से सुने हमने, के अब
शहरे-दिल तेरी हुकूमत नहीं देखी जाती
गर ग़ज़ल कहनी ही है 'दास', सलीका सीखो
हमसे उर्दू की यों ज़िल्लत नहीं देखी जाती
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