ये बस कम-ज़र्फ़ लोगों का ज़माना है
यहाँ उल्फ़त फ़क़त छुपना छुपाना है
कभी मिलना कभी मिल कर बिछड़ना भी
मोहब्बत ही जताने का बहाना है
मिरे अहवाल-ए-दिल से उसको क्या मतलब
उसे तो इश्क़ में खाना कमाना है
गवाही ज़ख़्म ख़ुद अपनी नहीं देगा
ज़बाँ खोलो कहो कितना पुराना है
कभी वहशत कभी उलफ़त यही हैं हम
हमारी ज़ात तो बस इक फ़साना है
हमें बस दौर-ए-आख़िर में ज़माने को
फ़क़त खुल कर यहाँ हँसना हँसाना है
कभी ख़ुद से बे-ईमानी नहीं की है
यही इक सच मिरा अपना ख़ज़ाना है
ग़म-ए-पिन्हाँ अभी है कम, रज़ा रब की
वगरना मेरा ग़म काफ़ी सियाना है
ख़ुशी पल भर ग़मों का ध्यान भटका ले
इसी उम्मीद-ए-फ़र्दा पर ज़माना है
जिधर देखो मोहब्बत ही मोहब्बत है
फ़क़त ये झूठ भी कितना सुहाना है
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