Afzal Peshawari

Afzal Peshawari

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Afzal Peshawari shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Afzal Peshawari's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
बग़ैर अपने किसी मतलब के उल्फ़त कौन करता है
ये दुनिया है यहाँ बे-लौस चाहत कौन करता है

गवारा लुत्फ़-फ़रमानी की ज़हमत कौन करता है
मोहब्बत करने वाले से मोहब्बत कौन करता है

कभी आईना ले कर हुस्न से अपनी ज़रा पूछो
नज़र को दिल को पाबंद-ए-मोहब्बत कौन करता है

मोहब्बत मैं भी करता हूँ मोहब्बत तुम भी करती हो
मगर दोनों में मुँह-देखी मोहब्बत कौन करता है

शरीक-ए-ज़िंदगी हो कर मिरा तुम साथ क्या दोगी
किसी के रंज पर क़ुर्बान राहत कौन करता है

तुम्हें ज़ोम-ए-मोहब्बत है मुझे भी है मगर ऐ जाँ
तुम अपनी दिल से ही पूछो मोहब्बत कौन करता है

जवानी के निखरते हुस्न की अंदाज़ से पूछो
मिरे ख़्वाबीदा जज़्बों से शरारत कौन करता है

ग़लत इल्ज़ाम है मुझ पर मिरे बर्बाद होने का
ख़ुद अपने वास्ते पैदा मुसीबत कौन करता है

टटोलो अपने दिल को और अपने दिल से ही पूछो
कि ये मेरे लिए सामान-ए-वहशत कौन करता है

ग़रज़-मंदी तक ऐ 'अफ़ज़ल' मोहब्बत सब को होती है
मोहब्बत आज-कल हस्ब-ए-मोहब्बत कौन करता है
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Afzal Peshawari
नौजवानी में अजब दिल की लगी होती है
ग़म के सहने में भी इंसाँ को ख़ुशी होती है

प्यार जब प्यार की मंज़िल पे पहुँच जाता है
हँसते चेहरों के भी आँखों में नमी होती है

पास रहते हैं तो दिल महव-ए-तरब रहता है
दूर होते हैं तो महसूस कमी होती है

जब भी होता है गुमाँ उन से कहीं मिलने का
दिल के अरमानों में इक धूम मची होती है

नामा-बर से न कहूँ बात तो फिर फ़ाएदा क्या
और कह दूँ तो तिरी पर्दा-दरी होती है

जब भी तो मेरे तसव्वुर में मकीं होता है
दिल की दुनिया तिरे जल्वों से सजी होती है

कज-अदाई हो सितम हो कि हों अल्ताफ़-ओ-करम
अपने महबूब की हर चीज़ भली होती है

क्या बताऊँ मैं तिरे जिस्म की रंगीनी को
जैसे साग़र में मय-ए-नाब ढली होती है

उन के आने से सुकूँ आने लगा है 'अफ़ज़ल'
आज कुछ दर्द में महसूस कमी होती है
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आप के दिल को मिरे दिल से कहीं प्यार न हो
ज़िंदगी मेरी तरह आप की दुश्वार न हो

मानने से मिरी डर है उन्हें इंकार न हो
ये मिरी अर्ज़-ए-तमन्ना कहीं बे-कार न हो

शौक़ से रब्त-ए-मोहब्बत को बढ़ाएँ लेकिन
हद से बढ़ कर ये मोहब्बत कहीं आज़ार न हो

ज़िंदगी रश्क के क़ाबिल हो मोहब्बत में अगर
दिल की हर बात पे इक़रार हो इंकार न हो

मेरे अरमानों की दुनिया का ख़ुदा-हाफ़िज़ हो
आप के दिल में अगर जज़्बा-ए-ईसार न हो

ऐश चूमेगा क़दम रंज के दिन टलने दे
मेरे दिल उन की मोहब्बत से तू बेज़ार न हो

ज़िंदगी यूँ ही भटकती रहे मंज़िल के लिए
एक से एक को दुनिया में अगर प्यार न हो

हिज्र के अब तो तसव्वुर से ही दम घुटता है
में तो मर जाऊँ जो पहलू में मिरे यार न हो

मैं समझता हूँ वफ़ादार-ए-मोहब्बत उस को
जो मोहब्बत में वफ़ाओं का तलबगार न हो

रब्त की चाशनी का किरकिरा हो जाए मज़ा
लुत्फ़-आमेज़ मोहब्बत में जो तकरार न हो

उस पे होते हैं ज़माने के करम ऐ 'अफ़ज़ल'
इक ज़रा से जो करम का भी रवादार न हो
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