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बग़ैर अपने किसी मतलब के उल्फ़त कौन करता है  - Afzal Peshawari

बग़ैर अपने किसी मतलब के उल्फ़त कौन करता है
ये दुनिया है यहाँ बे-लौस चाहत कौन करता है

गवारा लुत्फ़-फ़रमानी की ज़हमत कौन करता है
मोहब्बत करने वाले से मोहब्बत कौन करता है

कभी आईना ले कर हुस्न से अपनी ज़रा पूछो
नज़र को दिल को पाबंद-ए-मोहब्बत कौन करता है

मोहब्बत मैं भी करता हूँ मोहब्बत तुम भी करती हो
मगर दोनों में मुँह-देखी मोहब्बत कौन करता है

शरीक-ए-ज़िंदगी हो कर मिरा तुम साथ क्या दोगी
किसी के रंज पर क़ुर्बान राहत कौन करता है

तुम्हें ज़ोम-ए-मोहब्बत है मुझे भी है मगर ऐ जाँ
तुम अपनी दिल से ही पूछो मोहब्बत कौन करता है

जवानी के निखरते हुस्न की अंदाज़ से पूछो
मिरे ख़्वाबीदा जज़्बों से शरारत कौन करता है

ग़लत इल्ज़ाम है मुझ पर मिरे बर्बाद होने का
ख़ुद अपने वास्ते पैदा मुसीबत कौन करता है

टटोलो अपने दिल को और अपने दिल से ही पूछो
कि ये मेरे लिए सामान-ए-वहशत कौन करता है

ग़रज़-मंदी तक ऐ 'अफ़ज़ल' मोहब्बत सब को होती है
मोहब्बत आज-कल हस्ब-ए-मोहब्बत कौन करता है

- Afzal Peshawari

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