Amjad Ali Ghaznawi

Amjad Ali Ghaznawi

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Amjad Ali Ghaznawi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Amjad Ali Ghaznawi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
ज़वाल-ए-गुलसिताँ देखा न जाए
उजड़ता आशियाँ देखा न जाए

उठो और मौसम-ए-गुल में बदल दो
अगर दौर-ए-ख़िज़ाँ देखा न जाए

रहा करते हैं हम अब उस ज़मीं पर
जहाँ से आसमाँ देखा न जाए

ये हम बादा-कशों की अंजुमन है
यहाँ सूद-ओ-ज़ियाँ देखा न जाए

किसी बुलबुल से क्यों अब शाख़-ए-गुल को
चमन में गुल-फ़िशाँ देखा न जाए

खड़े हैं सर के बल शैख़-ओ-बरहमन
दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ देखा न जाए

हमारे दौर-ए-ग़मगीं में किसी से
किसी को शादमाँ देखा न जाए

न जाने क्यों किसी महफ़िल में मुझ से
किसी को सरगिराँ देखा न जाए

बहुत देखी रिया-कारी-ए-आदा
फ़रेब-ए-दोस्ताँ देखा न जाए

दयार-ए-दैर या सेहन-ए-हरम में
हुजूम-ए-मय-कशाँ देखा न जाए

सफ़र में कारवाँ से दूर रह कर
ग़ुबार-ए-कारवाँ देखा न जाए

सियासत के तन-ए-बे-जाँ पे 'अमजद'
हुजूम-ए-करगसाँ देखा न जाए
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Amjad Ali Ghaznawi
नग़्मा जो महमिल के बाहर है वही महमिल में है
हाल में ज़ाहिर है पोशीदा जो मुस्तक़बिल में है

जिस का परतव गेसु-ए-शब में मह-ए-कामिल में है
इक झलक उस हुस्न-ए-पोशीदा की तेरे दिल में है

जलवा-ए-यज़्दाँ भी रक़्स-ए-अहरमन भी दिल में है
आदमी भी किस क़दर उलझन में है मुश्किल में है

कह रहा था एक दीवाना ये हंगाम-ए-सफ़र
रह-नवर्दी में जो राहत है वही मंज़िल में है

हौसला-मंदान ग़व्वासान-ए-दरिया के लिए
ज़िंदगी मौजों में है जो वो कहाँ साहिल में है

अपनी फ़ितरत पर चमन में ख़ार-ओ-गुल तो हैं मगर
इक तज़ाद-ए-मुस्तक़िल इस मुश्त-ए-आब-ओ-गिल में है

जाम है मीना है सहबा-ए-जुनूँ-अफ़ज़ा भी है
साक़िया आ जा कि इक तेरी कमी महफ़िल में है

बे-रह-ओ-बे-रहनुमा गर्म-ए-सफ़र है क़ाफ़िला
फ़ाएदा क्या इस तरह की सई-ए-ला-हासिल में है

पैकर-ए-शौक़-ओ-तलब बन कर जो है गर्म-ए-सफ़र
हर क़दम उस राह-रौ का सरहद-ए-मंज़िल में है

मरजा-ए-इल्हाम बन सकता है कोशिश हो अगर
इक मक़ाम ऐसा भी पिन्हाँ आदमी के दिल में है

आफ़्ताब-ए-दिल से गरमा और चमका दे उसे
ज़र्रा-ए-हक़ जो निहाँ गर्द-ए-रह-ए-बातिल में है

दिल तो है ना-आश्ना-ए-बादा-हा-ए-ज़िंदगी
जाम-ओ-मीना का मगर सौदा सर-ए-ग़ाफ़िल में है

ढूँडते रहिए मगर 'अमजद' को पा सकते नहीं
वो तो अब इक नूर के दरिया-ए-बे-साहिल में हे
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Amjad Ali Ghaznawi
दिल नहीं दिल का इज़्तिराब नहीं
साग़र-ए-जम नहीं शराब नहीं

दौर ये दौर-ए-इंक़िलाब नहीं
बर्क़ में भी तो पेच-ओ-ताब नहीं

बर्क़ तो है मगर सहाब नहीं
धूप है और आफ़्ताब नहीं

शौक़-ए-नाकाम ही सही लेकिन
हुस्न भी आज कामयाब नहीं

दिन में तारीकी-ए-शब-ए-ग़म है
ये हक़ीक़त है कोई ख़्वाब नहीं

ऐ नसीम-ए-सहर चमन में क्यों
लाला-ओ-गुल में आब-ओ-ताब नहीं

आदमी आदमी का दुश्मन है
इक तमाशा है इंक़लाब नहीं

इस को माहौल ने ख़राब किया
आदमी फ़ितरतन ख़राब नहीं

बाग़बाँ शाख़-ए-गुल से है नाराज़
बर्क़ अब मूरिद-ए-इताब नहीं

सहन-ए-गुलशन में आज अब्र-ए-करम
एक हम हैं कि फ़ैज़याब नहीं

कुछ दिनों से न जाने क्यों दिल में
इक ख़लिश सी है इज़्तिराब नहीं

अब मिरे उन के दरमियाँ 'अमजद'
कोई पर्दा नहीं हिजाब नहीं
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Amjad Ali Ghaznawi
ये दिल जो दर्द-ए-मोहब्बत से बे-क़रार नहीं
वो सुब्ह-ए-शौक़ नहीं शाम-ए-इंतिज़ार नहीं

किसी निगाह में मस्ती नहीं ख़ुमार नहीं
ये कोई और हैं साक़ी ये बादा-ख़्वार नहीं

तुम्हारी शाख़-ए-नशेमन में बर्ग-ओ-बार नहीं
बहार में भी तुम्हारे लिए बहार नहीं

गुलों की ग़ुंचों की पज़मुर्दगी से ज़ाहिर है
चमन में आज भी हालात साज़गार नहीं

रविश रविश पे ये काँटे तो ख़ैर काँटे हैं
यहाँ तो लाला-ओ-गुल का भी ए'तिबार नहीं

रह-ए-ख़िरद में ब-हर-गाम लाख काँटे हैं
जुनूँ की राह में हाइल ये ख़ार-ज़ार नहीं

तुम्हारा दस्त-ए-जुनूँ क्या अभी नहीं उट्ठा
तअ'य्युनात के पर्दे जो तार तार नहीं

अजीब हाल है इस गुलसितान-ए-हस्ती का
कभी बहार है इस में कभी बहार नहीं

वो दूसरों के लिए क्या बनेंगे चश्मा-ए-फ़ैज़
जो आप अपने गुनाहों पे शर्मसार नहीं

ये संग-ओ-ख़िश्त जो हों मो'तबर तो हों लेकिन
इस आदमी का बहर-हाल ए'तिबार नहीं

ये आज-कल की बहारें भी रूह-फ़र्सा हैं
वहीं सुकूँ है ब-ज़ाहिर जहाँ बहार नहीं

उठा के जाम-ओ-सुबू ख़ुद उंडेल लेते हैं
हमारी बज़्म में साक़ी का इंतिज़ार नहीं

ये देखते हो जो 'अमजद' को मय-कदा-बर-दोश
वो मय-फ़रोश है मय-नोश-ओ-मय-गुसार नहीं
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Amjad Ali Ghaznawi