Ahmad Sajjad Babar

Ahmad Sajjad Babar

@ahmad-sajjad-babar

Ahmad Sajjad Babar shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ahmad Sajjad Babar's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

10

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
फूल ख़ुशबू उन पे उड़ती तितलियों की ख़ैर हो
सब के आँगन में चहकती बेटियों की ख़ैर हो

जितने मीठे लहजे हैं सब गीत होंगे एक दिन
मीठे लहजों से महकती बोलियों की ख़ैर हो

चुनरियों में ख़्वाब ले कर चल पड़ी हैं बेटियाँ
इन पराए देस जाती डोलियों की ख़ैर हो

बारिशों के शोर में क्यूँ जागते हैं दर्द भी
सेहन-ए-जाँ में रक़्स करती बदलियों की ख़ैर हो

रख़्त-ए-दिल को थाम कर वो आ गई हैं रेत पर
ख़्वाहिशों की ख़ैर हो उन पगलियों की ख़ैर हो

अब कबूतर फ़ाख़ताएँ जा चुकी हैं गाँव से
ऐ ख़ुदावंद पेड़ की और बस्तियों की ख़ैर हो

रात है 'बाबर' खड़ी सैलाब का भी ज़ोर है
साहिलों की माँझियों की कश्तियों की ख़ैर हो
Read Full
Ahmad Sajjad Babar
कब वो भला हमारी मोहब्बत में आ गए
हाए वो लोग जो कि ज़रूरत में आ गए

वैसे तो उन को साए से उलझन बला की थी
मोमी बदन थे धूप की नफ़रत में आ गए

रेज़ा वजूद मेरा अभी तक हवा में है
तुम तो क़रीब मेरे शरारत में आ गए

कुछ तो हमें भी जागते रहने का शौक़ था
कुछ रतजगे भी ख़्वाब की क़ीमत में आ गए

आवाज़ दे रहा है अभी कूज़ा-गर मुझे
यूँ लग रहा है चाक से उजलत में आ गए

यादों के इस हुजूम से फ़ुर्सत नहीं हमें
तुझ से बिछड़ के कैसी ये फ़ुर्सत में आ गए

अब आँख से पिला दो मिरे यार ज़िंदगी
कि ख़ाल-ओ-ख़द के पार तो वहशत में आ गए

या'नी हमारे नाम की शोहरत है औज पर
या'नी फ़क़ीह-ए-शहर की तोहमत में आ गए

भाई सभी पसंद की शादी के हक़ में थे
बहनों ने ख़्वाब देखे तो ग़ैरत में आ गए

शाही मिज़ाज रखते हैं मुंसिफ़ सभी यहाँ
'बाबर' ये किस तरह की अदालत में आ गए
Read Full
Ahmad Sajjad Babar
बुझती हुई आँखों का अकेला वो दिया था
हिज्राँ की कड़ी शब में अज़िय्यत से लड़ा था

रुकता ही नहीं तुझ पे निगाहों का तसलसुल
कल शाम तिरे हाथ में कंगन भी नया था

इक चश्म-ए-तवज्जोह से उधड़ता ही गया था
वो ज़ख़्म कि जिस को बड़ी मेहनत से सिया था

बरगद के इसी पेड़ पे उतरेंगे परिंदे
सैलाब-ज़दा घर के जो आँगन में खड़ा था

दरवेश की कुटिया के ये लाशे पे बनी है
वीरान शिकस्ता सी हवेली पे लिखा था

तस्वीर में उस को ही सर-ए-बाम दिखाया
मज़दूर ज़माने के जो पाँव में पड़ा था

वो ज़ख़्म जुदाई का भला कैसे दिखेगा
मलबा जो मिरे जिस्म का अंदर को गिरा था

'बाबर' हो कि बहका हुआ झोंका या सितारा
तेरी ही गली में हमें जाता वो मिला था
Read Full
Ahmad Sajjad Babar