Ali Wijdan

Ali Wijdan

@ali-wijdan

Ali Wijdan shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ali Wijdan's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

9

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
मुझे ख़्वाब-ए-सराब-ए-अज़ाब दिए मिरी रूह का नग़्मा छीन लिया
आशोब-ए-मलाल इशरत-ए-जाँ 'विज्दान' से क्या क्या छीन लिया

इक रंज-ए-सफ़र की धूल मिरे चेहरे पे गर्द-ए-मलाल हुई
इक कैफ़ जो संगी साथी था उस कैफ़ का साया छीन लिया

मिरे हाथ भी ज़ख़्म-ए-दिल की तरह मैं टूट गया साहिल की तरह
ऐ दर्द-ए-ग़म-ए-हिज्राँ तू ने क्या मुझ को दिया क्या छीन लिया

इन रंगों में मिरा रंग भी था इन बातों में मिरी बात भी थी
मिरा रंग मिटा मिरी बात कटी किस ने मिरा रस्ता छीन लिया

ऐ शहर-ए-अलम मिरी बात तो सुन तू ख़्वाब मिरे वापस कर दे
मैं तेरा करम लौटा दूँगा तू ने मिरा चेहरा छीन लिया

मैं नौहागरी तक भूल गया मिरे लोग जले मिरे शहर लुटे
इस शहर-ए-मईशत ने मुझ से एहसास का दरिया छीन लिया

ये सूद-ओ-ज़ियाँ की बातें हैं इन बातों में क्या रक्खा है
इक ख़्वाब-ए-तमन्ना दे के मुझे इक ख़्वाब-ए-तमन्ना छीन लिया
Read Full
Ali Wijdan
ऐ नीश-ए-इश्क़ तेरे ख़रीदार क्या हुए
थी जिन के दम से रौनक़-ए-बाज़ार क्या हुए

बोल ऐ हवा-ए-शाम वो बीमार क्या हुए
मोनिस तिरे रफ़ीक़ तिरे यार क्या हुए

ऐ जुर्म-ए-इश्क़ तेरे गुनहगार क्या हुए
ऐ दोस्त तेरे हिज्र के बीमार क्या हुए

रस्म-ए-वफ़ा का ज़िक्र तो अब ज़िक्र रह गया
वो पैकर-ए-वफ़ा वो वफ़ादार क्या हुए

ऐ कम-शनास वक़्त तुझे याद तक नहीं
वो ज़ख़्म-ए-जान-ओ-दिल के तलबगार क्या हुए

कार-ए-जुनूँ में जिन के हुए आम तज़्किरे
फ़स्ल-ए-जुनूँ बता वो ख़ुद-आज़ार क्या हुए

जोश-ओ-नदीम-ओ-फ़ैज़ भी बैठे हैं हार के
पहुँचे थे जो जुनूँ में सर-ए-दार क्या हुए

ज़िंदान-ए-तीरगी में मुक़य्यद हैं आज भी
पैदा हुए थे सुब्ह के आसार क्या हुए

'विज्दान' आशिक़ी में गँवानी थी जान भी
प्यारे वो तेरे तौर वो अतवार क्या हुए
Read Full
Ali Wijdan
सवाद-ए-शौक़-ओ-तलब ग़म का बाब ऐसा था
जला के ख़ाक किया इज़्तिराब ऐसा था

बहुत ही तल्ख़ था या'नी शराब ऐसा था
सवाल याद नहीं है जवाब ऐसा था

तमाज़तों ने ग़म-ए-हिज्र की उजाड़ दिया
बदन था फूल सा चेहरा किताब ऐसा था

मैं काँप काँप गया हूँ ब-नाम-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ
शुमार-ए-ज़ख़्म-ए-हुनर का जवाब ऐसा था

सुलग रहे थे मिरे होंट जल रहा था बदन
ज़बाँ से कुछ न कहा था हिजाब ऐसा था

मिरी तलब ही बनी मेरे पाँव की ज़ंजीर
भटक रहा हूँ मैं अब तक सराब ऐसा था

झुलस के रह गया चेहरा तमाम ख़्वाबों का
ख़ुमार-ए-तिश्ना-लबी का अज़ाब ऐसा था

वो अहद-ए-गुमरही कहता है उस की मर्ज़ी है
जो देख ले तू तड़प जाए ख़्वाब ऐसा था

बहुत ही ज़ो'म था अपनी मोहब्बतों पे उसे
निभा सका न वफ़ा कामयाब ऐसा था

रफ़ाक़तों का फ़ुसूँ टूटना ही था 'विज्दान'
सफ़र में छोड़ गया है ख़राब ऐसा था
Read Full
Ali Wijdan